STORYMIRROR

DR MANORAMA SINGH

Abstract Classics

4  

DR MANORAMA SINGH

Abstract Classics

सिसकियाँ

सिसकियाँ

1 min
10

टूटा हुआ दिल,

जब चुपचाप रोता है,

सिसकियां के रूप में,

वह पीड़ा को कहता है,


कारण कहीं कोई,

अपना ही होता है,

धंसता है कोई शर हृदय में,

रक्त रंजित जब होता है,

सिसकियों के रूप में,

वह पीड़ा को कहता है,


आहत हृदय और व्यथित मन के उद्गम से, 

चक्षुनीर की सरिता को जब, 

बलात् रोका जाता है,

जब सपनों के किसलय को,

हठात् मसला जाता है,


सिसकियों के रूप में वह,

तब पीड़ा को कहता है,

मात्र सिसकियाँ नहीं,

इसे तुम क्रंदन समझो,

मात्र अश्रुहीन रोदन नहीं,

तुम बेबसी का बंधन समझो।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract