लहरें
लहरें
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लहरों के इस शोर में,
सागर की निश्चलता
कुछ कहती है,
शून्यता है उर में,
पुकारता प्रतिध्वनि में,
कोई आवाज सुनाई देती है,
धरा के कंठ में,
गान गहरा विपुलता का,
धरा का चंद्र से
क्या मिलन दिखाई देता है,
कोलाहल है हृदय में,
छुपाकर अपनी व्याकुलता,
क्या रहस्यमयी पुकारें
सागर सुनाता जाता है,
रेत सा कण कण फिसलता
फिर भी पग आगे बढ़ाता
ढूँढता उसमें भी अनुकूलता
सागर अपनी जीवतंता से
हमें प्रभावित करता है।।
