बुद्ध पूर्णिमा का संदेश
बुद्ध पूर्णिमा का संदेश
क्यों रोते हो बन्धुवर
जीवन के संतापों से,
इन तापों की तपिश से,
जलता वही जो निष्काम नहीं,
तेरा- मेरा , अपना- पराया,
दूर हटो इन जंजालों से,
जीवन चक्रों को दोहराता वही
जिसका जीवन निष्काम नहीं,
मोह, लोभ, तृष्णा को तजकर
न उलझो तुम बीती बातों में,
न उलझो तुम भावी बातों में,
क्रोधानल में जलता वही
जिसका जीवन निष्काम नहीं,
न उतारो तुम मिथ्याचरण
को निज जीवन में,
दूसरों पर विजय से अच्छा तो
स्वयं पर विजय है सही,
पराजित होता वही
जिसने पाया निर्वाण नहीं,
दिखलाया जिसने अष्टांग मार्ग,
मन को किया जिसने शांत,
चलकर जिस पर हम बने महान,
भटक कर होता पतित वही,
जिसके कर्म निष्काम नहीं।।
