सदैव अटल
सदैव अटल
सागर से गहरे व्यक्तित्व से,
कीमती रत्नों को लाना था,
अल्प समय,कार्य कठिन और
नियत समय पर आना था,
उस गहरे पानी से,
कुछ ही रत्नों को लेकर लौटी हूँ,
ये वो रत्न हैं जो मैंने खोजे हैं,
देश प्रथम की जिद, हिन्दुत्व पर अभिमान,
कोमल हृदय,सहयोगी भाव,
श्रेष्ठ कवि, ओजस्वी भाव,
पराजय में भी अजेय भाव,
आदर्शों और यथार्थों के श्रेष्ठ संयोजक,
राष्ट्र साधना हेतु दीर्घ प्रतीक्षा,
पर वरदान न मांगने पर जो अटल,
चाहे बस साथ और आशीर्वाद जनता का,
राष्ट्र हित के लिये दुनियाँ को,
झुकाने का अदम्य साहस उनका,
प्रथम शिल्पकार थे गठबंधन सरकारों के,
एक वोट की हार उनकी नहीं,
ये हार थी कुत्सित राजनीति की,
टूटे हुए सपने की सबने सुनी सिसकी,
अन्तर की चीर व्यथा से जनता भी ठिठकी,
कितना कहना, कितना अनकहा रहना है,
थी उसमें महारत भी,
दक्षिण पंथी राजनीति के नायक
और उन्नायक भी,
तुम युग का अंत नहीं,
युग की निरन्तरता हो,
भारत रत्न भी तुमसे ही
शोभित था,
किया था अटल वादा,
लौटकर आऊँगा कूच से क्यों डरूँ
भरोसा है आप पर मन छोटा क्यों करूँ।।