शीर्षक - टकटकी लगाए नैन
शीर्षक - टकटकी लगाए नैन
होलिका दहन की लपटों में
टकटकी लगाए देख रहे हैं नैन
इंसानियत पर प्रश्नचिन्ह लगाते
झुर्रियों के आवरण से ढका शरीर
कमानी सा झुका तारतार तन
कटोरा लिए हाथ में वह लाठी टेकते हाथ
खो दिया देश की जंग में
पति और जिगर के टुकड़े को
आज किसी सहारे की आस में
टकटकी लगाए देख रहे हैं नैन
क्या ! बंद हो जाएगी यह जंग की होली
खाली ना हो फिर किसी मां की झोली
आतंकवाद यह खत्म हो जाए
आंखों से वेदना के
झर झर आंसू बहाते
अमन शांति की भीख मांगते हाथ
होलिका दहन की लपटों में।