धरा का श्रंगार
धरा का श्रंगार
आकाश में दौड़ते श्वेत मेघ
हरियाली से लदे पहाड़
नौजवानों की तरह मस्ती में झूमते पेड़
हरियाली की चुनर ओढ़े धरा
किस्से सुना रही हूं अपने बचपन के..!
आज धुंध से भरे हुए हैं बादल
धूल और कंक्रीट से भरे पहाड़
प्रदूषण से असमय बूढ़े हो गए पेड़
सूखी बंजर धरा पर इंसानी अत्याचार
है समय अब भी आओ सब मिलकर
करते हैं प्रकृति का श्रंगार
आम ,जामुन,बरगद और नीम के वृक्षों से
महक उठे हर घर का आंगन...!