सखी री ये सावन
सखी री ये सावन

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सखी री ये सावन मन को भाये
उमड़ घुमड़ कर कारे बदरा
पीहर की याद दिलाए
याद आए सब सखा सहेली
करते थे जिनके संग हंसी ठिठोली
सावन आतेे ही यह मन
पीहर की गलियों में खो जाए
याद आता है वह अल्हड़ बचपन
भाई बहनों के संग जो गुजरा वह पल छिन
मां का आंचल बाबुल की यादें
आज फिर वही सब याद आए
सखी री आज यह सावन बहुत रुलाए
सखी री आज यह सावन बहुत रुलााए!