शील छंद
शील छंद
स्वर बॉंटत प्रेम प्रभाकर
करुणा कर हे करुणाकर
स्वर बॉंटत....
सबके हित का कर चिंतन
हिय में प्रिय सा सम सिंचन
दुख हों जब देखत क्रंदन
तब मानव का करुॅं वंदन
विधना विधि लेख विधाकर..
स्वर बॉंटत....
समता सब लोग करें जब
ममता रुप मात धरें अब
सत कर्म सदा कर मानव
बिन मानवता अब दानव
हरषे अकुले कुसुमाकर
स्वर बॉंटत....