शिद्दत से चाहा था
शिद्दत से चाहा था
मैंने निभाई सारी शर्तें तुम संग प्यार की,
मेरी आत्मा और मेरे मन में तुम बस गए,
पर तुमने न चाहा कोई बंधन प्यार का,
लो ये तूफां भी आया दूर ले जाने हमें I
सूखी मिट्टी पर बारिश की महक लगी,
कभी अजनबी की तरह मिलते रहे हम,
आज कड़वी हकीकत से हुआ सामना,
कोई ओर आ गया है अपनाने तुम्हें I
कितना वक्त तुम्हारे साथ गुजार दिया,
दीवारें भी सुनती रही बातें हमारे प्यार की,
जाने कितनी बार आंखों में तस्वीर बनाई ,
दूर रहकर मेरी कभी याद ना आई तुम्हें I
अब तो हर रात दिलासे में कट जाती है,
कि कल की भोर में तुम आओगी मेरे पास,
जिस प्यार को सींचा था अपने भरोसे से,
आज वो भरोसा भी अब याद नहीं तुम्हें I
दर्द तो उठता है पर प्यार उभरता नहीं,
अब इस चोट से भी तुम्हें फर्क पड़ता नहीं,
अब इंतजार की भी आशा न रही मन में,
पर दिल मानता नहीं, ढूँढने निकल जाता हूँ तुम्हें I