सहेज कर संभालना
सहेज कर संभालना
बचपन से हम
पढ़ते आ रहे है
कि हमारी पृथ्वी
जीवन का आधार है
धरती हमारी माता है
आसमान हमारा पिता है
यानि कि हम सब परिवार है
थोड़े बड़े हुए
तब से पता चला
इससे भी बढ़कर है काफी
पेड़-पौधे, जंगल, जानवर
ये सब हमारा पर्यावरण है
जिसे हमें बचा के रखना है
यदि नहीं रखा तो
प्रदूषण हो जाएगा
और हमें जीने में कठिनाई आएगी
और बड़े हुए
तब पता चला कि
हम इंसान ही कारण है
इस प्रदूषण का
इस विनाश का
विध्वंस का
धरती के बदलते
इस स्वरूप का
"वासुधैव कुटुम्बकम "
लिखा होता है
सांसद की दीवार पर
यानि कि धरती ही
हमारा परिवार है
अगर परिवार है तो
ये सब कर रहे है हम
अपने परिवार के साथ!
जिस धरती ने हमें
एक बच्चे की तरह
पाला-पोसा, बड़ा किया
खाने को अनाज, फल दिए
आसमान ने पानी दिया
रहने लायक शुद्ध वातावरण,
शुद्ध वायु, और न जाने
क्या-क्या दिया
बदले मैं हम इससे शुक्रिया
कहने की जगह इसी पर
अत्याचार कर रहे है
मोहम्मद गौरी की तरह
इसे लूटते ही जा रहे है
अपनी लालसा के लिए
खोखला करते जा रहे है
कुछ पैसों के लिए
तभी मौसम भी अपने रंग
बदलता रहता है
लोगों को दिखा रहा है
सचेत कर रहा है
कि सुधर जाओ
अभी भी समय है
नहीं तो आगे बहुत
विध्वंस होगा
जैसे आज कल
दिल्ली में हो रहा है
साँस लेने में दिक्कत हो रही है
स्मॉग की चादर बिखरी हुई है
बच्चे, जवान क्या बूढ़े
सब मास्क लगाकर घूम रहे है
साँस लेने में तकलीफ़ हो रही है
आगे अगर ऐसे ही चलता
रहा तो वो दिन दूर नहीं
जब शुद्ध हवा बोतल में मिलेगी
साँस लेने के लिए
फिर शुद्ध पानी
और न जाने क्या-क्या
अभी भी थोड़ा वक्त है
हमें अपने इस परिवार
को बचाना है
इसकी देखभाल करनी है
जैसे हम अपने माँ-बाप
की करते है
सहेज कर संभालना है इसे
प्यार देना है इसे
जैसे इसने हमें दिया है
सींचना है इसे हमें
अपने परिश्रम से
तभी तो एक बार फिर
ये हमारा परिवार बनेगा...
