शब्द
शब्द
एक शब्द गडा था नदी के तीर पर
तीक्ष्ण शब्दों से किसीने उसे उखाड दिया।
अब गुलाम नहीं चलते धूल भरी मिट्टी पर
सब को मुलायम और रेशीम सडके चाहिए
सडके बनी होती है नदी पर सदियों से पसरी
मिट्टी से
उस मिट्टी के अंदर अनंत शब्दों की समाधियाँ है।
वो समाधियाँ जिन सक्त हाथों ने बनाई वो गुलाम अब
नहीं चलना चाहते उस प्राचीन सडकपर
प्राचीन सडक मुलायम और रेशीम नहीं है।
और कब समझ मे आयेगा की धूल और मिट्टी शास्वत और सनातन है।
कल तीक्ष्ण शब्दों का किसने इस्तमाल किया वो गुलाम कौन था
जिसने सबको प्रेरित किया।
और बता दिया की शब्द मृत होते है
जबतक वो जबान पर आ नहीं जाते।
मैं नहीं जानता की उस शब्द को किसने उखाडा
जो नदी के तीर पर अपना देह छोड रहा था।
