इजाजत
इजाजत
क्या मैं तुम्हारी कब्र के पास खडा रह सकता हूं
या उस बात की भी इजाजत नहीं मिलेगी।
एक शास्वत कवि को बरसाती दिनों मे अपने छत से टपकते हुए तुमने देखा था।
और कड़ी धूप मे चलते हुए, उस भास्कर के सातवें घोडे को तुमने पानी पिलाया था।
और वो तुम ही थी ना जो भरी सभा मे द्रोपदी से लिपट गई थी श्वेत वस्त्र बनकर।
और तुम्हें ही तो जमा करके शबरी ने खिलाया था उस अव्यक्त शक्ति को
कितना लंबा इंतजार किया था उसने, जो मैं कभी नहीं कर सकता हूं।
मैं बारिश की वो आखरी बूँद हूं जिसे तुमने देखा था अपने छत से टपकते हुए।
और मैं अभी तुम्हारे कब्र के सामने खडा हूं, चर्च का पवित्र जल बनके।
क्या तुम मुझे इजाजत दे सकती हो
तुम्हारे अंदर मुझे घुल जाना है पूरी तरह से!
मैंने कहा ना नहीं होता मुझे शबरी सा इंतजार
मुझे इजाजत चाहिए बस तुम दे दो...