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Anup Gajare

Abstract Tragedy Others

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Anup Gajare

Abstract Tragedy Others

विवशता

विवशता

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हम रोते हैं,
पर कमजोरी के लिए नहीं,
ये तो उस अनकहे भीतर के तूफान की आवाज़ है।
जहाँ शब्द फुसफुसा नहीं पाते,
और सन्नाटा ही सबसे गहरी चीख़ बन जाता है।
विकल्पहीनता की आग में झुलसती आत्मा,
हर साँस में तन्हाई का भंवर समेटे।
सब कुछ होते हुए भी हम अकेले हैं,
जैसे कोई अंधेरी नदी अपनी धार में खो गई हो।
हमारे हाथ भीतर की दीवारों को छूते हैं,
पर कोई सहारा नहीं, कोई हाथ नहीं।
दुनिया की भीड़ में भी हम जैसे अनदेखे,
खुद से भी कट गए,
अपने ही भीतर खोए।
आँसू सिर्फ पानी नहीं,
ये वे क्षण हैं जब आत्मा अपने अस्तित्व से सवाल करती है। क्या किया जाए?
क्या कहा जाए?
जब सब विकल्प बंद हों और रास्ते खत्म हों।
फिर भी, इसी विवशता में कहीं,
छिपा होता है उस साहस का बीज,
जो हमें धीरे-धीरे खामोशी से लड़ना सिखाता है,
और अकेलेपन की आग में भी हमें अपनी राह दिखाता है।  


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