'बारिश'
'बारिश'
ये जो बारिश हैं..
न मेरी हैं
न तुम्हारी हैं..
ये बारिश हैं सड़क पर चलती
लाल काली चीटियों की
जंगल मे मदमस्त दौड़ते हातियों की..
धरा की और नीले गगन की
और हैं सुखे गले मे लगी अनबुझी प्यास की
नदियों की जलधि की खेत,पर्वत, पहाड़
और हरी हरी हरियाली की..
न मेरी न तुम्हारी और न ही उनकी
जो कर रहे हैं यमुना को काला..
उन कलियाओ की तो हरकीज ये बारिश नहीं हैं..
बारिश ओ बारिश सुन तो..
तु नहीं हैं आदम के इन संतानों की
मुझे बचाना हैं तुझे
मुझसे ही बचाना हैं..
क्क्युकि, मै भी तो इंसान ही हूँ..
जैसे तेरी हर हर बूंद को पीता एक ड्रेक्युला
इस लिए
ये जो बारिश हैं
न मेरी हैं
न तुम्हारी हैं....
