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Sukant Suman

Abstract Classics Inspirational

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Sukant Suman

Abstract Classics Inspirational

इंसानियत बची कहाँ

इंसानियत बची कहाँ

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अब इंसानियत बची कहाँ 

था मानता बरसों से

जिसको भगवान्।।


वो बन गया अब हैवान।

कोई तड़प रहा 

इक-इक साँस को

और कोई बस लूट रहा

गरीबों के खून-प्यास को।


जिन्दगी जा रही 

दो कौड़ियो के भाव में। 

और कुछ खुदगर्ज़ 

सिर्फ़ कफ़न बेच रहा है।।


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