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Sukant Suman

Abstract Tragedy

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Sukant Suman

Abstract Tragedy

किसने यह चोट लगाई?

किसने यह चोट लगाई?

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किसने यह चोट लगाई है?

किसने मानवता को ललकारा है?


है पूछ रहा यह उद्वेलित मन

कि कब तक त्रासदी झेलेगा तन।।


है करता हाहाकार वो जब

पर मानवता बची कहाँ अब?


न जाने कितने मरे ,कितने टूटे 

पर नेताओं के वादें निकले झूठे।।


अब बस यही कामना रब से 

कि उबार दे कौम को इस संकट से।।



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