Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Sukant Suman

Abstract Tragedy

4.7  

Sukant Suman

Abstract Tragedy

कारवां गुजर गया

कारवां गुजर गया

1 min
392


कारवाँ गुजर गया

हम दर-बदर भटकते रहे।।

इक अजनबी के तलाश में 

मीलों तलक चलते रहें।।


ख्वाब थे, टूट गये

वक्त था,बीत गया

हम खड़े-खड़े राह देखते रहे 

कारवाँ गुज़र गया मुँह ताकते रहे।।


साँस भी थम गए

मार्ग भी भटक गए

इक क़ाफ़िर की तलाश में 

अंत भी आ गया 

कारवाँ भी गुजर गया।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract