बड़ी ज़ालिम है यह ज़माने वाला।
बड़ी ज़ालिम है यह ज़माने वाला।
ऐन वक्त पर नहीं साथ निभाने वाला
बड़ी ज़ालिम है यह ज़माने वाला।
चर्चा-ए-खास होते थे हमारे मरासिम के
पर निकला वो इक धूर्त, दिल तोड़ने वाला।
इस मोहमाया की नगरी में कोई अमृत पीकर नहीं आता
फिर भी इस क्षणिक जीवन में मिलजाता कई धोखा देने वाला।
हर चोट खाया दिल इस दर्द को बाखुब जानता है
पर मुद्दतो लग जाता फिर से खोजने में इक नया दिल वाला।
'सुकान्त' तेरा यह मुश्ताक दिल मुतज़िर है कबसे
कि फिर से इक महताब मिल जाता, सच्चा दिल लगाने वाला।