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Sukant Suman

Tragedy Children

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Sukant Suman

Tragedy Children

माँ : एक अप्रतिम रचना

माँ : एक अप्रतिम रचना

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जीवन शोर भरा सन्नाटा

कोई भर पेट खाता

तो कोई भूखा ही सो जाता।।

निकले थे छोड़कर घर बार

कमाने के वास्ते

पर कमबख़्त बेच दी ज़मीर

इक बावफा के वास्ते।।


फिर लगी आग शिकम में जोरों की

तड़प उठा कलेजा जेठ की दोपहरी में।।

पर न था कोई आय

और न ही किसी से कोई परिचय।

गठरी बाँध, निकल पड़ा

गाँव की और ।।


मीलों तलक कर के सफर

वो पहुंचा अपने घर के डगर।।

छलक पड़े आँसू आँखों से माँ की

सहसा! दौड़कर हिय से लगा ली

पूत को माँ ने।

धरती पर माँ से बड़ी

न कोई शहकार।

चाहे कितनी भी रूठ जाए

पर कभी कम न होता प्यार।।


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