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Sukant Suman

Tragedy

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Sukant Suman

Tragedy

दुर्दशा

दुर्दशा

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महामारी में मरते हैं 

रोजाना हजारों लोग।

पर आकड़ा दर्शाती है 

बस कुछेक।

सच्चाई छिपती नहीं 

बस लगेगा कुछेक वक़्त।


कितने घर हो गए वीरान

लोगों का पेशा 

पर लग गया विराम।

पर कत्ल, हिंसा 

अब बढती जा रही बेखौफ।।

और बढता ही जा रहा 

फासला अमीरी-गरीबी का हर रोज।


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