कोई ख़ंजर सा दिल में चुभ रहा
कोई ख़ंजर सा दिल में चुभ रहा
कोई ख़ंजर सा दिल में चुभ रहा
वो वक्त था जो बीत गया।।
लम्हों- लम्हों पर यादें बनी
फिर इक दिन सारा ख़्वाब टूट गया।।
'मतलबी' कुरेद कर दिल में जख्म़ भर दिया
और मैं ग़फ़लत में दिन बिताता गया।।
छीन कर सारे अम्न मिरे वो
दिन-रात चैन की सांस लेता गया।।
सुकून में कोई नहीं बचा अब 'सुकान्त'
पूरे आबो-हवा में नफरत का जहर फैल गया।।