बीज
बीज
इक बीज सौ उपजाता है
रे मानव! तू क्यूँ
व्यर्थ समय गंवाता है।।
है तुझमें असीमित, अपार शक्ति
पर तु दानिस्ता खफ़ा रहता है।।
वक्त ठहरता नहीं हर किसी के लिए
पर तू रुका रहा
हर बावफा के लिए।।
अब उठ भर दो हुकांर
मानवता की रक्षा हेतु
ले लो इक नया अवतार।।
