मेरी मानों ... चलो सजाते हैं ‘एक से दो फूल’ अपनी ज़िंदगी के गुलदस्ते में ऐसे भी तो मना सकते हैं हम... मेरी मानों ... चलो सजाते हैं ‘एक से दो फूल’ अपनी ज़िंदगी के गुलदस्ते में ऐसे भ...
छोर खुल गए भावों में जकड़े अंतर्मन के, होकर निश्छल भी तो ये मन स्वछंद कहाँ है? छोर खुल गए भावों में जकड़े अंतर्मन के, होकर निश्छल भी तो ये मन स्वछं...
प्यासा हूँ मैं कब से.. कैसे ये प्यास बुझाऊँ l प्यासा हूँ मैं कब से.. कैसे ये प्यास बुझाऊँ l
फिरूं हर गली, हर नगर में, फिरूं हर गली, हर नगर में,
सुन लो गाथा मेरे भारतवर्ष की, ऐतिहासिक स्वर्णिम स्पर्श की। सुन लो गाथा मेरे भारतवर्ष की, ऐतिहासिक स्वर्णिम स्पर्श की।
करलो सभी मिलकर आत्ममंथन इस प्रकृति बिन अधूरा है जीवन। करलो सभी मिलकर आत्ममंथन इस प्रकृति बिन अधूरा है जीवन।