ट्रैफ़िक पुलिस
ट्रैफ़िक पुलिस
जब शहर में कोई पागल हो जाता है,
तो वह ट्रैफ़िक पुलिस बन जाता है।
वह घंटों, दिनों तक खड़ा रहता है,
हाथों के इशारे से समय और गति को थाम लेता है।
उसकी गंभीरता अटूट है—
एक ऐसा गंभीर चेहरा जो आपको देख रहा है,
लेकिन कभी आपको नहीं देखता।
उसके वाहन और घोड़े अदृश्य हैं।
वे सड़क पर चलते हैं,
लेकिन किसी को कुचलते नहीं, किसी को बस स्टॉप पर नहीं उतारते।
वे वहां हैं, पर कहीं नहीं;
एक ऐसा अस्तित्व जो छूने, देखने या पकड़ने लायक नहीं।
शहर के लोग उसे देख सकते हैं,
या शायद नहीं।
कभी-कभी किसी ने कार की हल्की हँसी सुनी,
कभी घोड़े की खुरों की आवाज़ महसूस की,
लेकिन पलटकर देखो—
सड़क खाली है, हवा में केवल सूखा झोंका।
और वह पागल ट्रैफ़िक पुलिस,
अपने अदृश्य फौज के साथ,
शहर को नियंत्रित करता है।
वह नियम बनाता है जो नियम नहीं हैं,
सीमाएँ खींचता है जो कोई नहीं देख सकता।
शायद वह समय को रोक देता है,
शायद वह यादों को मोड़ता है।
शहर उसका है,
लेकिन कोई इसे पहचान नहीं सकता।
यह एक शहर है जो कभी अस्तित्व में था,
और शायद कभी होगा भी नहीं।
