भूतवन बैतलवन होरी खेले तू कहा भोला भंगिया पिये ना जा। भूतवन बैतलवन होरी खेले तू कहा भोला भंगिया पिये ना जा।
ये कविता गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान की गयी शिक्षा पर आधारित है... ये कविता गुरु द्वारा शिष्य को प्रदान की गयी शिक्षा पर आधारित है...
मौन भी आगाज़ है मौन भी आवाज़ है। मौन भी आगाज़ है मौन भी आवाज़ है।
बोलने के नहीं मैं, काबिल ही छोडूं। मुंह जाके उन्हीं का, सिल आऊंगा।। बोलने के नहीं मैं, काबिल ही छोडूं। मुंह जाके उन्हीं का, सिल आऊंगा।।
उनको वहां स्थान दे दिया स्थित हो गए वो वहां समाधि में। उनको वहां स्थान दे दिया स्थित हो गए वो वहां समाधि में।
तुम्हारा सत्य का निवास मठ-स्तूप-समाधि में था सृष्टि के कण कण में था तुम्हारा सत्य का निवास मठ-स्तूप-समाधि में था सृष्टि के कण कण में था