श्रीमद्भागवत -५६;देवहूति को तत्वज्ञान और मोक्ष पद की प्राप्ति
श्रीमद्भागवत -५६;देवहूति को तत्वज्ञान और मोक्ष पद की प्राप्ति


कपिल जी के सांख्य शास्त्र ने
देवहूति का मोह हर लिया
स्तुति करें वो कपिल मुनि की
माता ने था उनको प्रणाम किया।
बोलीं देवहूति, ब्रह्मा प्रकट हुए
प्रभु आपके नाभिकमल से
सहस्त्रों शक्तियां हैं आपमें
प्रभु आप सम्पूर्ण जीवों के।
कितनी विचित्र बात है ये कि
जिनमें सृष्टि लीन हो जाये
उन अविनाशी पुरुष हरि को
धारण किया मेरे गर्भ ने।
आप पापिओं का दमन करें
भक्तों का कल्याण करें हैं
ज्ञानमार्ग जीवों को दिखलाने
कपिल अवतार में जन्म लिया है।
आप साक्षात् परब्रह्म हैं
आप ही वो परम पुरुष हैं
बार बार प्रणाम करूं मैं
साक्षात् विष्णु का स्वरुप हैं।
माता की स्तुति सुनकर फिर
गंभीर वाणी में कपिल जी ने कहा
शीघ्र तुम परमपद पाओगी
सुगम मार्ग मैंने तुमसे कहा।
मेरे तुम प्रापत करोगी
जन्म मरण रहित स्वरुप को
ये उपदेश देकर माता को
कपिल जी चले गए फिर वन को।
देवहूति फिर योगसाधना से
समाधि में स्थित हो गयीं
हालाँकि पति और पुत्र के
जाने से वो बहुत व्याकुल थीं।
भगवद भक्ति के प्रवाह से फिर
वैराग और ज्ञान के द्वारा
चित को शुद्ध किया उन्होंने
प्रभु में ध्यान लगाया सारा।
कपिल जी के बताये मार्ग से
उन्होंने थोड़े ही समय में
परमपद को प्राप्त कर लिया
मुक्त हुईं संसार चक्र से।
स्थान जहाँ सिद्धि प्राप्त हुई
सिद्धपद नाम से विख्यात हुआ वो
शरीर नदी रूप हो गया
सब प्रकार की सिद्धि देती जो।
ईशानकोण की और चले कपिल जी
वहां समुन्द्र उनका पूजन करे
उनको वहां स्थान दे दिया
स्थित हो गए वो वहां समाधी में।