STORYMIRROR

समाधि

समाधि

2 mins
312


तूने रूप छोड़ा,

रंग छोड़ा।

स्वाद छोड़ा ,

गंध छोड़ा।


राग भी ,

विराग भी,

प्यार भी,

और त्याग भी।


मिथ्या,

संसार छोड़ा,

वृथा,

विचार छोड़ा।


अब झूठ से

विरक्त हो,

न सत्य से

आसक्त हो।


ये सत्य है,

अनासक्त हो,

फिर भी आनंद से,

विरक्त हो ?


कि ध्यान भी तो नाव है,

क्यों रत इनमे पाव है ?

कि तप छोड़ो,

त्याग भी,

ये राग भी,

वैराग भी।


आनंद हीं बाधा है,

आनंद की चाह में।

तेरा ईश्वर रोड़ा बना है,

ईश्वर की राह में।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama