STORYMIRROR

Sahil Hindustaani

Abstract Romance Fantasy

4  

Sahil Hindustaani

Abstract Romance Fantasy

शायरी

शायरी

1 min
347

जाने क्यूँ उनकी मुस्कुराहट का तलबग़ार रहता हूँ मैं

जबकि हर बार वो मुझे घायल कर जाती है


ग़ज़ल जैसे सँवारी हुई हो बयाज़ में

ऐसे सिमटी हुई आज वो चादर में


हाए! कितनी नसीबदार है ज़ुल्फ़ें तेरी

हरदम तेरे रुखसार जो चूमती है


तेरा नाम सुनकर ही, गुलाबी हो उठता हूँ

कैसे कहती मुझे फ़िर, 'तू प्यार नहीं करता'


तलब़ उट्ठी है आज शराब की मुझे

आ इधर कि तेरे लब़ों का लम्स लूँ

लम्स - छुअन


आह भरी उन्होंने जब पाँव पर पाँव फेरा

अच्छा है जान गए वो लुत्फ़ वस्ल का


सोचा ना था उनका लम्स भी पा सकूँगा

आज वो ही मेरी ज़ानू गर्म करते है

ज़ानू - thighs


ज़ुल्फ़ें बाँध आए है वो आज वस्ल को

अंजान है पल भर में ये खुल जाएगी


सोचता हूँ दिन - रात मैं उनके बारे में

फ़िर क्यूँ लोग कहते, " ये प्यार नहीं है "


कल एक बोसा लिया था उनका मैंने

जान गया तब मैं शराब का स्वाद

बोसा - kiss


मासूमियत, शोख़ियां, हय़ा, सदाक़त से बना जिस्म उनका

बड़ी आसानी से वो मेरा क़त्ल कर गए 'साहिल'


तेरे ख़्वाब तेरे ख़याल और ज़िंदगी क्या है

इक तेरी करूँ इबादत और ज़िंदगी क्या है


क़ालीन मख़मली मेरा आज राख़ हो गया

तेरा मुलायम जिस्म जो शबिस्तां में आ गया


तुझसे तुझ ही को माँगना मेरा काम हो गया

ज़ालिम तू मेरे लिए अल्लाह और राम हो गया


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract