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Sahil Hindustaani

Romance

4  

Sahil Hindustaani

Romance

शायरी

शायरी

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दूर रहकर ना शोख़ अदाओं से लुभाओ

दिल पर कितने चलते है खंज़र तुम क्या जानो


क्यूँ काफ़िर कहते हो हमे यारों

उनकी इबादत तो करता हूं


जानता नही था मैं अपनी क़ीमत

आपके बे-इंतहा प्यार ने बता दिया


इस क़दर छाई है तेरी ख़ुमारी मुझ पर

ख़ुदा से पहले तेरा नाम लेता हूं


ग़ज़लें मेरी इतनी अच्छी नही बनती अब

यानि तुम्हारी अदाओं में ही वो बात नही रही


तुझे सोचकर ही ग़ज़लें मेरी शानदार बनती है

सोच तू पास होती तो क्या होता


ये दुनिया तो मुझे यूँ ही गुनहगार कहती है

गुनाह तो तुझसे मिलने के बाद होंगे


उनसे मुलाक़ात को आया हूँ आज मैं

खुद को बर्बाद करने आया हूँ आज मैं


ना खंज़र ना तीर ना तलवार है उनके पास

फ़िर क्यों उन्हें देख घायल हो जाता हूँ


कुछ समय पहले देखा था उन्हे

तबसे खुद को ढूंढ रहा हूँ मैं!



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