Arunima Bahadur

Classics

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Arunima Bahadur

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शायद हम समझदार न हुए

शायद हम समझदार न हुए

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शायद हम समझदार नहीं हुए

 समझदारो की समझदारी के

आगे हम सदा नासमझ ही हुए

 ना स्वार्थ की समझ न धन लोलुपता


 मन में तो है वही शीतलता 

इस शीतलता से हम विभूषित हुए

 पर कभी हम समझदार ना हुए

 प्रेम को मन में छिपाए 


खोजे खिलखिलाने के उपाय 

सदा बचपन की मुस्कुराहट लिए

 पर कभी हम समझदार ना हुए 

भूली बिसरी यादों संग खिलखिलाते


 पुष्पों के संग खुशियों का संसार लिए

 पर कभी हम समझदार ना हुए

 जग भुला पर हम ना भूले 

प्रकृति संग सदा हम खेले 

मुखड़ा विश्वास का लिए 

पर कभी हम समझदार ना हुए।


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