सदा सुहागन
सदा सुहागन
जीवन भर तुमने मेरा साथ दिया
बस इतना और साथ निभा देना
कर देना मेरी ये चन्द इच्छाएँ पूरी
कुछ इस तरह से मुझे तुम, विदा देना।
अपने हाथों से तुम मेरा
श्रृंगार सजाना ऐसे
दुल्हन बन कर तेरे घर
आई थी मैं,जैसे।
अपने हाथों से मेरी आँखों में,
काजल लगाना,
ऐसे मेरी पथराई आँखों में
बस गई हो तेरी सूरत जैसे।
मेरे माथे अपने हाथों से
बिंदीया लगाना,
ऐसे बड़े प्यार से मस्तक को मेरे
तुमने चूमा हो जैसे।
अपने हाथों से तुम मेरी
माँग सजाना ऐसे
कईं जन्मों का बन्धन तुमसे
मैं जोड़ चली हूँ जैसे।
अपने हाथों से होठों पर मेरे
लाली लगाना ऐसे
कोई महका सा गुलाब तुमने
उन पर रक्खा हो जैसे।
अपने हाथों से तुम मुझे
चूड़ी पहनाना ऐसे
हाथों को तुमने मेरे कस कर
पकड़ा हो जैसे।
मेहंदी लगे तो, उसमें तुम अपना
नाम लिखवाना ऐसे
अग्नि की लपटें भी उसको
मिटा न पाए जैसे।
सोलह श्रृंगार के बाद, शादी
का जोड़ा उढ़ाना ऐसे
मेरे पार्थिव जीवन, फिर मिला
हो जैसे।
अपने काँधे पर ले चलना पिया
तुम मुझे उठा कर ऐसे
अपने सीने से तुमने मुझे
लिपटा रक्खा हो जैसे।
अंतिम बार बस तुम, मुझे
पुकारना ऐसे
पहले मिलन सुना रहे हों
गीत मुझे तुम जैसे।
अपनी यादों में तुम पिया
मुझे बसाना ऐसे
तेरी एक-एक साँस के साथ
मैं चल रही हूँ जैसे।
मेरी यह सब इच्छाएँ
पूरी करना तुम ऐसे
माँगूँ प्रभू के पास जा कर
हर जन्म पिया तुम जैसे।।