सच्ची प्रीत
सच्ची प्रीत
कशिश कला की
कलाकार की
पास बुलाती हैं।
लबों की जुम्बिश
चैन छीन
जालिम बन जाती है।
अजब शरारे
कैद नजर में
शोले भड़काती है।
प्रेम प्यार का
गजब नशा
ताबीर दिखाती है।
पाक मुहब्बत
सिसके हरदम
पीर जगाती है।
फिर भी घूमे
सदा पतंगा
शमा के चारों ओर
मेघों के छा जाने पर
क्यों मोर करे है शोर।
खुद ही पैर कुल्हाड़ी मारे
फिर चिल्लाता है
भूत चढ़े जब इश्क-प्रेम का
दिल भरमाता है।
इस वसुधा पर
सदियों से ही
चली आ रही रीत।
हंसते हंसते रोने का ही
नाम है सच्ची प्रीत।