सच्ची दास्तां
सच्ची दास्तां
जिसको भी पूछा, वो ही हंसता ना मिला,
होठों में दबी रह गई दिल की बातें किसी को सुनने का मौका ना मिला।
दहशत व दर्द की लगी झड़ी, साफ झलक रही थी ,
चेहरे पे खिलखिलाता गुलदस्ता ना मिला।
दादा की उम्र गुजर गई बोझ ढोते ढोते,
पौते की पीठ पै बस्ता ना मिला।
जहरीला हो गया आज का इंसान
इतना की सांप भी उसे डंसता ना मिला।
जिस देश में बहती थी कभी दूध की नदियां सुदर्शन,
अब नकली दूध भी वहां सस्ता ना मिला।
कागज है महंगा, दोगुनी हो गई छपाई उस पै,
लिखे क्या कोई, सस्ते में कागज का दस्ता ना मिला।
सोचा था खुदा के घर जा कर करेगा फरियाद सुदर्शन,
मुफ्त में मंदिर जाने का रास्ता ना मिला।
किस को सुनाये कोई दुख दर्द की बातें,
पुतले दिखते हैं सब आपने सुदर्शन,
जब हिला कर देखा तो कोई हां में हां मिलाता न मिला।
जोड़ ले डोर सच्चे रब से ऐ बन्दे,
उससे अच्छा रिश्ता कोई निभाता न मिला,
समझ गया जो उसकी लगन को वोही भक्त सभी को हंसता हंसाता मिला।