सच बताना...!
सच बताना...!
इक बात कहूँ
सच में अब तुम खुश हो ना...?
बात बात पर ना कोई रोकता होगा
ना कोई डांटने के लिए
ना समझाने वाला कोई
ऐसा करो, वैसा ना करो
अरे...! ये क्या
समय पर ना उठ सकते हो
ना कोई काम कर सकते हो...?
मैं नहीं हूँ तो कौन चिढ़ता है तुमसे
कौन चिढ़ाता है तुमको...?
ना रोना ना हँसना
जो चाहो करते होगे
अब तो आनंद ही आनंद होगा
ना इंतिज़ार करना किसी काल का
अब तो मौज ही मौज है...!
सच...!
कितनी मतलबी कितनी अभिमानी थी मैं...?
है ना...!
केवल अपने लिये सोचती और जीती
पर अब और नहीं,
क्यूँ तुम किसी ग़ैर की सहते
अच्छा किया जो छोड़ दिया
खैर...!
एक दिन तो ये होना ही था
सो हुआ, जाओ और खुश रहो
मेरा क्या,
मैं तो...!!!