Dhanjibhai gadhiya "murali"

Tragedy Thriller

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Dhanjibhai gadhiya "murali"

Tragedy Thriller

सब्र

सब्र

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सब्र रखकर मैं भटक गया हूं,

राह मुझे दिखाई देती ही नहीं,

सब्र रखकर पायमाल बना हूं,

जिंदगी की बाजी पलटती नहीं।

सब्र रखकर अपमानित हुआ हूं,

सर पे कलंक लेकर घूम रहा हूं,

सब्र रखकर अब मायूस बना हूं,

मायूसी मेरे मन में हटती ही नहीं।

जुल्म-सितम सहकर थक गया हूं,

अब ज्यादा सब्र मैं रह सकता नहीं,

ये सब्र भी कैसी चीज है कमबख्त,

मेरे दिल से बेकरारी हटने देती नहीं।

सब्र को मैं अब छोड़ना चाहता हूं,

लेकिन कभी मैं छोड़ सकता नहीं,

कब तब ये सहता रहूंगा मैं "मुरली",

ये सब्रता मेरा पीछा छोड़ती नहीं।



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