मै कवि हूं
मै कवि हूं
मै एक साहित्य का गहरा साधक हूं,
मै माँ सरस्वती का प्यारा बालक हूं,
शब्दों को अपनी कलम में उतारकर,
मै सुंदर कविता का सर्जन करता हूं।
मै व्याकरण की गहराई समजता हूं,
मै शब्दों को अलंकार से सजाता हूं,
साहित्य के रस का मै प्रास मिलाकर,
मै श्रोताओं के मन को बहलाता हूं।
मै कभी अपनी कविता से रुलाता हूं,
कभी मै अपनी कविता से हंसाता हू,
श्रृंगारीक, प्रेमरस का वर्णन लिखकर,
मै प्रेमीओं की गमगीनी दूर करता हूं।
मै अमर ईतिहास की यादें दिलाता हूं,
मै सल्तनत की आंखे भी खोलता हूं,
"मुरली" तो एक एसा कवि है मेरे यारों,
मै हरपल शून्य में से सर्जन करता हूं।