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Goldi Mishra

Tragedy

4  

Goldi Mishra

Tragedy

सभा ( कुरुक्षेत्र का आरम्भ)

सभा ( कुरुक्षेत्र का आरम्भ)

2 mins
449



         

  मुझे घसीटते हुए इस सभा में लाया गया,

  मेरे मान को कुचला गया,    

मेरे अस्तित्व पर एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया गया,

  भरी सभा में पांचाली को एक वैश्या कहा गया,

  पासों की बाज़ी पर क्यूं मेरा दांव खेला,

  भरी सभा में मैने कई विद्वानों की मति को नष्ट होते देखा,

       

   एक  पिता पुत्र की गलतियों पर मौन था,

    एक गुरु अनिष्ट होता देख भी मौन था,

    कुलवधु की दशा पर हस्तिनापुर मौन था,

    जिसका गौरव और प्रेम थी द्रौपदी वो अर्जुन धनुष त्याग बैठा था,

    तन से जब चीर खींचा गया,

     गिरधारी ने लाज को संजो लिया,


   कई योद्धा, और मुनि ऋषि क्यों कुछ ना कह सके,

   इस अन्याय को क्यों द्रव्यदृष्टि धारी ना रोक सके,

   कुछ अंधे थे कुछ पट्टी बांध बैठे थे,

   कुछ अन्याय से मुंह फेर सर झुकाए बैठे थे,

   औरत को नित नई परिभाषा यही समाज देता है,

   और द्रौपदी के अध्याय को झुटलाता है,


   द्रौपदी वो आवाज़ है जो जय घोष में कई खो गई,

   महाग्रंथ महाभारत में बस एक पात्र बन कर रह गई,

   कहानी आज भी वही है बस पात्र बदले है,

   सभा आज भी वही है समाज मौन आज भी है,

   नारी आज भी गिरधारी की आस में है,

   एक नारी के लिए रोज़ हर पहलू पर उसका जीवन चौसर में  दांव पर  है।



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