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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

सब स्वपन

सब स्वपन

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कभी गले में रस्सी बाँध देते हो 

कभी काट देते हो एक तरफ का पंख 

फिर कहते हो उड़ो 

मैं तुम्हारे साथ हूँ 

भद्दे मज़ाक, व्यंग्य तक तो ठीक है 

लेकिन इतने भी मत गिरो 

कि उठ न सको कभी भी 

तुम मेरे शरीर के मालिक हो सकते हो 

तुम मुझे सामाजिक नियम बनाकर बाँध सकते हो 

तुम मुझे धर्म की जंजीरों में जकड़ सकते हो 

तुम मुझे पाप पुण्य, शील अश्लील, नैतिक अनैतिक, कुलटा, चरित्र हीन की गालियों में तौल सकते हो 

तुम मुझे सजा और मजा की वस्तु समझ सकते हो 

किन्तु मत भूलो कि तुम मेरे खुदा नहीं हो 

तुम मेरे विधाता नहीं हो 

मत भूलो ताकत के मद में कि मैं तुम्हारी जननी हूँ 

मेरे बिना तुम कुछ भी नहीं 

जिस दिन अपनी कोख बाँध ली न 

नामोनिशान मिट जाएगा तुम्हारा 

और तुम्हारी सृष्टि, तुम्हारा समाज सब खत्म. 



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