सब कुछ बिकता है
सब कुछ बिकता है
अह्सास मर चुके हैं
प्रेम, श्रद्धा, विश्वास, शर्म
बाजार की भेंट चढ़ चुके हैं
अब कुछ है तो संशय भरी बुद्धि
जो डगमगाती है
लाभ, हानि के तराजू में
सच से जिसका कोई सरोकार नहीं
अब संदेह है मन में
आत्मा नहीं है तन में
वासना भरा शरीर
अब मीरा न मीर
न गंगा, जमुना के तीर
अब है काला आसमान
सूखी धरती, रोटी के विज्ञापन
बिकती है भूख
ख़रीदी जाती है भूख
अब हर ओर बाजार
घरों की दीवार से मन तक
सब कुछ बिकता है
जीवन भी, मौत भी
लाश से लेकर कफन तक.