साथ रहते कभी कद्र नहीं की
साथ रहते कभी कद्र नहीं की
हम जा तो रहे, अब तेरी ज़िन्दगी से चुपचाप ,
तुम्हें हमारी यादों को आसान ना भुलाना होगा !
हर मंजर मेरे साथ की यादों का रूलायेगा तुझे ,
अब इस दर्द को तुझे भी गले से लगाना होगा !
साथ रहते तुमने कोई कद्र जो ना की कभी मेरी ,
मेरे बाद तुझे अपनी गलतियों पर पछताना होगा !
तुम अभी बड़ी शान से चलते हो सीना तानकर ,
आगे जाकर तुम्हें बड़े शर्म से सर झुकाना होगा !
तुझे सुननी पड़ेगी जब लोगों के ताने उलाहने ,
कानों को हाथों से ढांप करके छुप जाना होगा !
तेरी असलियत एक रोज जब आयेगी सामने ,
देखना, तेरे खिलाफ खड़ा दुश्मन जमाना होगा !
तेरी कुछ करतूतें इंसानों से छुप जाएं बेशक ,
पर खुदा के घर झूठ का ना कोई बहाना होगा !