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Rishabh kumar

Drama

5.0  

Rishabh kumar

Drama

सारी दुनिया हमें अंजान लगती है

सारी दुनिया हमें अंजान लगती है

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अब तो सारी दुनिया हमें अंजान लगती है,

ज़िंदगी तू चंद दिनों की मेहमान लगती है।


सुना था मोहब्बत रुह की जागीर होती है,

अब तो महज़ दिल बहलाने का सामान लगती है।


उदास रहता है मेरे घर का वो जलता चिराग़

मेरे शहर की हवाएँ मुझसे परेशान लगती है।


उजाड़ कर "एहसास" लोग बसा लेते हैं नयी दुनिया,

मुझे तो यहाँ हर महफ़िल बियाबान लगती है।


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