Rishabh kumar

Romance

4.0  

Rishabh kumar

Romance

शोहरत

शोहरत

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मेरी पहली और आखिरी कविता के बीच जो फासला है,

वही मेरी शोहरत और नाकामी की कहानी है।


हाँ वही किताब जिसको तुमने अपने हाथों से सजाया था,

हाँ वही किताब हमारे प्यार की आखिरी निशानी है।


एक वो शेर जो तुम कभी सुन न सकी ,

हाँ वही एक शेर मुझे सबसे छुपानी है।


कैसे भूल गये तुम वो सारी बातें,

बस इसी बात की मुझे हैरानी है।


इसलिए भी अब तक नहीं सजाया अपने कमरे को,

मेरे कमरे में तेरी तस्वीर पुरानी है।


क्यों भूलूँ भला तुम्हारी बाते मैं,

हर गज़ल में ज़िक्र तुम्हारी ही आनी है।

 

तुमने ही कहा था न,

उम्र भर के लिए हम तुम्हारे हैं "एहसास"

बस इसी झूठ पर अब

मुझे अपनी उम्र बितानी है।


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