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Rishabh kumar

Others

5.0  

Rishabh kumar

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गाँव

गाँव

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580



वो बचपन की किलकारियाँ ,

वो नन्ही उंगलियों की निशानियाँ ,

जहां सँवरे दिन मेरे,

जहां गुज़रे दिन मेरे,

सब यादें पीछे छोड़ आना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो पनघट पे जमघट,

वो घर गृहस्थी की बातें,

वो सुख-दुख का बाँटना,

घंटों तक पानी निकालना,

गुज़ारिश है वक्त तुझ से,

हो सके तो वो दिन वापस लाना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो देहरी पर बैलों का रंभाना,

वो धूल भरी पगडंडी पर दौड़ लगाना,

वो कच्ची सड़कों पर जाना,

वो चापाकल की पानी पीकर खुश हो जाना,

सब लम्हों को पीछे छोड़ पलायन कर जाना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो खेत, वो खलिहान,

वो चौक चौराहे और सारा जहान,

वो लहलहाती फसलें और किसान,

मेरा उस खेत में चक्कर लगाना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो मिट्टी की खुशबू, वो धरती पे सोना,

और आसमां का पहरा, ना कोई मखमली बिस्तर

न तकिये का होना

करवट बदलते उन यादों का सामने आना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो ढोलक की थापें, वो विरह वो कजरी,

वो बंसी के ताने, वो

कड़क बोल खंजड़ी,

वो पायल की छनछन, वो घुंघरू की रुनझून,

वो चरखे की चरमर, वो चक्की की घुनघुन,

हो सके तो मुझे फिर से सुनाना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो पीपल की छैयां, नदी की तलैयाँ ,

वो चम्पे की झुरमुट की सौ-सौ बलैयाँ

वो छप्पर से उठना सुबह के धुएं का,

वो अमृत सा पानी, बुआ के कुएं का,

हो सके तो मुझे फिर से पिलाना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो सोने जैसे दिन वो चाँदी जैसी रातें,

वो जेठ की दोपहरी और दोस्तों की बातें,

वो बारिश की बूंदें वो सावन की रिमझिम,

वो बागों के झूले, वो गुड़िया के मेले,

वो यारों की मस्ती का याद आना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो बूढ़ी दादी की कहानी,

जिसमें होते थे राजा और रानी,

वो मिट्टी के किले बनाना,

टूटने पर फिर बहनों से फिर लड़ते ही जाना,

ऐ वक्त वापस ये दिन लेकर आना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।


वो तीज़ वो त्योहार,

वो शादी वो बारात,

वो मोहब्बत के रिश्ते ,

और बस मोहब्बत की बातें,

हो सके तो फिर से निभाना,

ऐ मेरे गाँव मुझे फिर से बुलाना।



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