साँसों का संगीत तुम
साँसों का संगीत तुम
मानो या ना मानो
पर सच यही है कि
तुम
रक्त बन
रम गये हो मेरी देह में,
लहू करता है संचरण
मेरी मरियल नसों में
तुम्हारे ही कारण,
अब तो सांस छूटने पर ही
टूटेगी यह राग,
तब तक यूं ही गूंजेगा
यह अनहदनाद
इस काया-श्रृस्टि में
सांसों का संगीत बन
देह के विलोपने तक
और तुम
साज बन
अगेरती रहोगी।
