सागर के पार
सागर के पार
बार-बार मन पहुंचे दक्षिण
उस सागर के पार
जहाँ सुना है चरण चिन्ह है,
जो हैं अपने प्राणाधार,
अशोक वन की स्मृतियां
अंतः पटल पे छाई है
मानो अब भी वृक्ष तले
बैठी ज्यों सीता माई हैं।
लंका जलने के निशान
अब भी शायद बाकी होंगे
पुष्पक विमान मानो वहाँ की
एतिहासिक थाती होंगे
इच्छा हिलोरें ले हजार
कब पहुँचेंगे हम सागर पार।
