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SUMAN ARPAN

Abstract

4.0  

SUMAN ARPAN

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रूसवाईयाँ

रूसवाईयाँ

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रुसवाइयों क्यूँ है मोहब्बत तुम को हमसे?

मैंने तो कभी तुम को चाहा ही नहीं!

मैंने कब ज़माने की ख़ुशी माँगी थी?

बस एक छोटी सी गुज़ारिश थी !

क्यूँ नहीं छोड़ती दामन मेरा?

मुझ से पहले ही पहुँच जाती है रुसवाईयाँ मेरी!

रुसवाईयों क्यूँ.....


दिल उनको ढूंढता है जिन्हें मेरी परछाई से भी नफ़रत है 

और मुझे नफ़रत है अन्धेरों की आग़ोश से ,

जीना चाहती हूँ उजालों की बाँहों में 

पर मुझ से पहले पहुँच जाती है परछाइयाँ मेरी!

रुसवाईयों क्यूँ......


मुझको बहारें आज भी तेरे आने का इन्तज़ार है!

नहीं रास आती फ़िज़ा की ये हवाएँ!

मदहोशियाँ मै चाहती हूँ और फूल,ख़ुशबू ,चमन महकाये!

 पर मुझ से पहले पहुँच जाती हैं बदनसीबियाँ मेरी!

रुसवाईयों क्यूँ....,, 


नहीं है किसी को ज़माने में मोहब्बत हमसे,

क्यूँकि रुसवाईयो ने वफ़ा बड़ी शिद्दत से निभाईं है!

मैं किसी को क्या सुनाओ इश्क़ का क़ायदा!

मुझसे पहले ही पहुँच जाती है कहानियाँ मेरी!

रुसवाईयो क्यूँ है मोहब्बत तुम को हमसे?

हमने के कभी तुम को चाहा ही नहीं!



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