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Pooja Agrawal

Tragedy

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Pooja Agrawal

Tragedy

रुखसती

रुखसती

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क्या हो तुम ?

सर्दियों की धूप,

गर्मियों की छावं,

बारिश की फुहार,

या पतझड़ के पत्ते 


सुलझे या उलझे

हुए सा रिश्ता

बदहवासी या सुकून

दूर हो गए हमसे

कुछ वक्त का तकाजा था


कुछ किस्मत की आजमाइश

पर फिर भी ज़हन में

तरोताजा हो तुम

ना तुम्हारा ख्याल ,

ना तुम, ना तुम्हारा स्पर्श ,


कुछ भी बासी हुआ,

हर सांस के साथ आते हो तुम ,

और यही रह जाते हो

जो मुकम्मल ना हो सका

उस रिश्ते में आज भी

जकड़ी हुई हूं मैं,


क्यों ना तुम ही मुझे

अपने जहन से आजाद कर दो,

कुछ और ना सही बस

इतना ही काम कर दो


मेरी बची-खुची सी ज़िंदगी

बस मेरे नाम कर दो,

कभी कुछ नहीं मांगा तुमसे

यह कहकर कि जरूरत

होगी तो मांग लूंगी,


अपना हक जताकर

हक का तो पता नहीं,

पर एक इल्तजा है,

अभी भी मुझे इजाजत दे दो,

अपने ख्यालातों से,


अपनी जिंदगी से दूर जाने की

भूलना चाहती हूं तुमको पर भूल नहीं पाती

शायद तुम भी याद करते होंगे मुझको

इसलिए नहीं कर पाती,


कागज होते तो जला देती

खिलौना होते तो तोड़ दे दी

तुम राह होते तो मुड़ जाती,

दुनिया होते तो छोड़ देती

तुम तुम नहीं थे

तुम में मैं थी

मुझ में तुम थे


कैसे कोई अपने अंदर से

खुद को निकाले

इसलिए यह आसान कर दो

मुझ पर एक एहसान कर दो

खाली कर दो मेरे दिल के कमरे को

और मुझे भी रुखसत कर दो।


कुछ दिन मन कचोटेगा मेरा

तकलीफ भी होगी मुझको

पर इस दर्द से निजात मिलेगी,

जिसमें में जी रही हूं

जहर जिंदगी का धीरे-धीरे पी रही हूं।


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