रोटी का जुगाड़
रोटी का जुगाड़


रूठे झूले, रूठी ख़ुशियाँ
रूठे बाग और फूल।
झोंक दिया नन्हे मासूमों को
सीमेंट कंक्रीट की धूल।
छूटा बस्ता छूटी क़िताब,
छूटे इनसे खिलौने हैं।
कैसे हो रोटी का जुगाड़ ,
बस यही अब सपने हैं।
हँसकर इनपर संसार स्वार्थी,
चलता रहता अपनी राह।
जागता हूँ फुटपाथ पर,
भाग्य ने दी है कैसी सजा।
माँ की लोरी, बाप का कंधा
रूठा मुझसे बचपन है।
भंवर में है अभिलाषाएँ मेरी।
ईश्वर के लिये सब समान,
मैं ही क्यों
? यह मंथन है।
टूटी आशा टूटी उम्मीद,
रूठी मुझसे तकदीर है।
मौसमों की मार सहती काया,
ही मेरी जागीर है।
कुम्हला बचपन,
हरपल मरता जीवन है
यह कैसा अत्याचार है,
यह तो बाल शोषण है।
इसी धरती की मिट्टी से जन्मा,
देश का सुपूत हूँ मैं।
मेरी गरिबी मेरी लाचारी
इसमें मेरी क्या भूल है?
मुझे देखकर दिल नहीं पसीजता,
आँख नम नहीं होती तेरी।
कलम पकड़ा दे मुझे,
रंग दूँ जिंदगी कोरी।