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Sandeep Kumar

Tragedy

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Sandeep Kumar

Tragedy

रोज रोज पानी ऐसे बरस रहा है

रोज रोज पानी ऐसे बरस रहा है

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रोज रोज पानी

ऐसे बरस रहा है

जैसे द्विपक्षीय

जंग हो रहा है।।


चौतरफा घेरने का

पूरा प्रबंध हो रहा है

आंधी तूफान कोरेना

एक संग हो रहा है।।


ढा़ल कृपाल लिए

बादल गरज रहा है

मौत के सामने मनुष्य

कुछ ना कर पा रहा है।।


केवल जान बचाने को

इधर उधर भटक रहा है

सामने आने का साहस

कोई ना कर पा रहा है।।


प्रकृति अपना प्रचंड रूप

धीरे धीरे दिखा रहा है

मानव की भूल का

एहसास करा रहा है


चींटी सा मसलता हुआ

इधर से उधर आ जा रहा है

प्रकृति अपना असली रूप

मनुष्य देखो दिखा रहा है।।


थोड़ा सा सुधरने का 

आशा वह कर रहा है

इसीलिए लिए वास्तविक

रूप न धारण कर रहा है।।


रोज रोज पानी

ऐसे बरस रहा है

जैसे द्वी पक्षीय

जंग हो रहा है।।




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