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Bhavna Thaker

Tragedy

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Bhavna Thaker

Tragedy

रंग में रंग मिला

रंग में रंग मिला

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आँखें जलाता नश्तर चुभाता

क्या सिर्फ़ धुआँ ही धुआँ 

उठता रहेगा 

छोटी सी चिंगारीयों से

कहने भर की एकता का 


दिखती नहीं आग पर 

जल तो रहा है शहर पूरा 

हर दिल में दर्द तो उठता है 

सैलाब जाने कब आएगा 

अपनेपन का


अपने घर की इज्जत सलामत रहे 

यही सोचकर बैठा है हर कोई 

क्या देश तेरा नहीं बंदे 

नफ़रत के कुएँ से निकल


विद्रोह की लाठी को तोड़

सच की कलम पकड़ कर 

कोई हिसाब तो लिख 

देश की उन्नति में क्या योगदान 

तुमने दिया


क्यूँ सियासत की लगाई आग में 

तू अपनी रोटियां शेकें 

पड़ोसी की भूख क्यूँ 

तेरी नज़र से छिपे


दंगों की तू आग बुझाकर 

देख कभी दो रंग मिलाकर 

झूठी अफ़वाह से बिना भरमाए


हरे से मिला केसरिया 

उभरे रंग अमन का प्यारा 

देखकर जिसे

इन्द्रधनुष के सातों रंग शर्माए।


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